रविवार शाम लोकसभा (Lok Sabha) में निशिकांत दुबे (Nishikant Dubey) और स्वास्थ मंत्री डा. हर्ष वर्धन (Dr Harshvardhan) जी को सुनकर अच्छा लगा. स्वास्थ मंत्री (Health Minister) जी ने भी स्वीकारा कि कोरोना को लेकर एक समुदाय को कलंकित किया गया.
उन्होंने इसकी निंदा भी की. और आश्वासन दिलाया कि जल्द ही एपिडेमिक डिजीज संशोधन अध्यादेश (Epidemic Disease Amendment Ordinance) में कड़े नियम बनाए जाएँगे. ताकि भविष्य में लोग ऐसी हरकत ना कर सकें.
लेकिन उन्ही के मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल (Lav Agarwal) जो हाल ही में कोरोना (Coronavirus) से रिकवर हुए है, कोरोना के आँकड़े पेश करते हुए ‘SINGLE SOURCE’ (Tablighi Jamat) के आँकड़े अलग से दिया करते थे.
दिल्ली अल्प संख्यक आयोग (Delhi Minority Commission) के खेद जताने के बाद भी “SINGLE SOURCE” (Tablighi Jamat) के आँकड़े जारी रहें.
फिर बाद में जब आदरणीय प्रधान मंत्री जी ने लोगों को बताया कि ये बीमारी जाती, धर्म और रंग देखकर नहीं आती तब जाकर कुछ लोगों को समझ आया.
स्वास्थ मंत्री जी अगर आपने उस समय महज़ एक पी.सी. क्या एक ट्वीट करके भी लोगो को समझाने की कोशिश की होती. तो शायद आज आपको संसद में खेद प्रकट ना करना पड़ता.
मुझे याद है मीडिया का बनाया वह दौर जब बेकसूर “जमाती” (Tablighi Jamat) छिप कर रह रहे थे. तमाम मस्जिद मदरसों और शहर के मरकज़ में पुलिस के छापे भी पड़ रहे थे और मीडिया इसे हाईलाईट कर रही थी.
बांबे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के तमाचे के बाद मीडिया ने चुप्पी साध ली, तब प्रतिदिन मुख्य हेडलाइन के साथ जमातियों को अलकायदा के आतंकी जैसा बताताया जाता था.
बांबे हाईकोर्ट के फैसले की खबर को ही क़द्दावर मीडिया और अख़बारों ने गायब ही कर डाला. ना कोई पैनल डिस्कशन हुआ ना कोई बिग ब्रेकिंग चली.
उस एक समुदाय का लोगों ने खुल कर बहिष्कार किया. कोई उनसे फल नहीं ख़रीदना चाहता, तो कोई उनके हाथ से सब्ज़ी नहीं लेना पसंद करता.
गली, मोहल्लों और सोसायटी में उनका प्रवेश वर्जित कर दिया गया. काफ़ी लोगों ने उनसे किसी भी प्रकार की सर्विस लेना तक बंद कर दिया.
बॉम्बे हाई कोर्ट की फटकार के बाद “Mainstream Media” ने तो चुप्पी साध ली. मगर Whatsapp University के चलते आज भी लोग उनका सामाजिक बहिष्कार कर रहे है.
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