Poem on Farmers By Rajeev Kumar:
दाल गेंहू आ धान ना होई
एक दिन जब किसान ना होई
भूख देखिह सताई रतिया के
और ओह पर बिहान ना होई
राजनीती से जेतना हम बानी
केहू अतना हरान ना होई
जे खियावता देश के ओकर
कबले पक्का मकान ना होई?
कर्ज माथे चढ़ल बा पहिले से
तहसे एकर निदान ना होई
जान जाई त जाई हमनी के
एसे ज्यादा जियान ना होई
खेत में होई ख़ुदकुशी जबले
तबले भारत महान ना होई
~राजीव कुमार
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