इस वर्ष, वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर को पूरे देश भर में धूम-धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है. वाल्मीकि जयंती रामायण के रचयिता और संस्कृत भाषा के परम ज्ञानी महर्षि वाल्मीकि के जन्म दिवस का प्रतीक है. अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि का जन्म हुआ था.
पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह दिन हर साल पूर्णिमा के दिन अश्विन माह में मनाया जाता है जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह सितंबर-अक्टूबर के महीने मे आता है.
कौन थे महर्षि वाल्मीकि?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर हुआ था. बचपन में एक भीलनी ने वाल्मीकि को चुरा लिया था इसलिए उनका पालन-पोषण भील समाज में हुआ. पहले महर्षि वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था और वो एक डाकू थे. परिवार के भरण-पोषण के लिए जंगल से गुजरने वालों को लूटते थे.
वैदिक काल के महान ऋषियों में से एक वाल्मीकि पहले एक डाकू थे, लेकिन फिर इस घटना ने उन्हे बदलकर रख दिया.
एक दिन उसी जंगल से नारद मुनि जा रहे थे. तो वाल्मीकि ने नारद मुनि को बंदी बना लिया. इस पर नारद मुनि ने उससे पूछा कि तुम ऐसे पाप क्यों करते हो? रत्नाकर ने जवाब दिया कि वह यह सब अपने परिवार के लिए कर रहा है. ऐसा उत्तर सुनने के बाद नारद ने पूछा, “क्या तुम्हारा परिवार भी इन पापों का फल भोगेगा.” रत्नाकर ने तुरंत उत्तर दिया ”हां”.
नारद ने कहा कि जाओ अपने परिवार से भी पूछ लो क्या वो तुम्हारा साथ देंगे? उन्होने ने जब अपने परिवार से पूछा तो सबने मना कर दिया. इस बात से वे बहुत दुखी हुवे और उसी दिन से उन्होने पाप का रास्ता छोड़ दिया.
इस घटना के बात उनकी आँखे खुल गयी और उन्होने बुराई का रास्ता छोड़ दिया और कई वर्षों तक कठोर तपस्या की. तपस्या के कारण उनके शरीर पर चीटियों ने बाम्भी बना दी. जिसके कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ा था. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें ज्ञान का वरदान दिया. ब्रह्मा की प्रेरणा से ही उन्होंने रामायण की रचना की.
वाल्मीकि जयंती को प्रगट दिवस के रूप में मनाया जाता है और भारत के उत्तरी क्षेत्रों में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है. वाल्मीकि का सबसे प्रसिद्ध मंदिर चेन्नई के तिरुवनमियुर में स्थित है और कहा जाता है कि यह 1,300 साल पुराना है. यह स्थान अत्यधिक महत्व का है क्योंकि यह कहा जाता है कि रामायण लिखने के बाद, वाल्मीकि ने उस स्थान पर विश्राम किया जहाँ अब मंदिर खड़ा है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाल्मिकि जयंती पर लोगों को बधाई दी.
राष्ट्रपति कोविंद ट्वीट करते हुवे कहा, “आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जयंती पर देशवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। रामायण के रचयिता तथा सामाजिक समरसता और सद्भाव के प्रतीक, उनका जीवन और शिक्षाएँ हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है”.
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जयंती पर देशवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। रामायण के रचयिता तथा सामाजिक समरसता और सद्भाव के प्रतीक, उनका जीवन और शिक्षाएँ हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है — राष्ट्रपति कोविन्द
— President of India (@rashtrapatibhvn) October 13, 2019
प्रधानमंत्री नरेन्द्र ने एक ट्वीट में कहा, “महर्षि वाल्मिकि के महान विचार, भारत के इतिहास में रचे-बसे हैं, जिनके बल पर भारत की परंपरा और संस्कृति फली-फूली है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय के स्तंभ महर्षि वाल्मिकि के संदेश हमेशा लोगों को प्रेरित करते रहेंगे।”
वाल्मीकि जयंती की बहुत-बहुत बधाई। महर्षि वाल्मीकि के महान विचार हमारी ऐतिहासिक यात्रा के बीज तत्व हैं, जिस पर हमारी परंपरा और संस्कृति पुष्पित-पल्लवित होती रही है। सामाजिक न्याय के प्रकाश-स्तंभ रहे उनके संदेश हमेशा हम सबको प्रेरित करते रहेंगे।
— Narendra Modi (@narendramodi) October 13, 2019