Kya Mai Teri Beti Nahi Thi: A Poem By Nigar Parveen.
जलती चिता से जब बेटी की
चीख़ गूंजी-
“क्या मैं तेरी बेटी नहीं थी”
इंसाफ़ का दामन झूठा थामा
मुझे बचाना मुझे पढ़ाना
तेरा इलेक्शन का ये बहाना
मेरा जिस्म राख बनाया
वादा तूने ख़ाक निभाया
जन्म कोख से जिसके ली
क्या वो मेरी जैसी नहीं थी –
“क्या मैं तेरी बेटी नहीं थी”
देर रात तूने आग जलाई
मेरे जिस्म में रूह चिल्लाई
क्या मेरे माँ बाप खड़े हैं
देख ज़रा कहीं दूर पड़े थे
समझाती कैसे दर्द हुआ है
मुँह मेरा कटा हुआ है
किससे बोलूँ कैसे बोलूँ
अपना मुंह में कैसे खोलू
जलाना ही था तो अनिन देते
बाप के हाथ में लकड़ी देते
चिता मेरी तूने क्यों जलाई
फिर कैसे तुझको नींद आयी
मेरे जिस्म को जिसने छीला
इंसाफ़ का तराज़ू क्यों रहा ढीला
क्या वो इंसाफ़ की देवी नहीं थी
क्या में तेरी बेटी नहीं थी।
~निगार परवीन (Nigar Parveen)
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