Farmer Suicides: आज़ादी के 70 साल बाद भी कृषि आज एक बहुत बड़ी समस्या है. कृषि किसान की स्मास्या है ये सब मानते है. पर सच्चाई क्या है? सच्चाई यह है कृषि पूरे देश की समस्या है. आज आप अख़बार उठाइए, टी. वी. खोलिये हर जगह बस एक ही चर्चा है, किसान आत्महत्या (Farmer Suicides) कर रहे है.
वर्ष 2014 के बाद से देश मे प्रति वर्ष लगभग 12000 किसान आत्महत्या कर रहा है. यह आकड़ा पूर्व की सरकार की तुलना मे कहीं ज़्यादा है. किसी देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्या क्या होगा जिसका जवान, किसान और विज्ञान आत्महत्या करना शुरू कर दे.
भाजपा (BJP) ने सरकार मे आने से पहले किसान को लागत का 50% लाभ जोड़कर एम एस पी देने का वादा किया था. पिछले 4 सालो में सरकार को किसानो की याद नही आई.

इस दौरान देश का शायद ही ऐसा कोई राज्य छूटा हो जहाँ पर किसान आंदोलन (Farmers Protest) ना हुवा हो. कई जगहो पर हड़ताल भी हुई. लागत मूल्य ना मिलने पर देश में पहली बार किसान आंदोलन में किसानो ने सरकार की ग़लत नीतियों के विरोध स्वरूप सब्ज़ियाँ, फल सड़को पर फेंक दिया. आंदोलनो में अन्नदाता के ऊपर गोलियाँ भी चलाई गयीं. अन्नदाता पर गोलियाँ चलवाने वाले कभी भी किसान के हितैषी नही हो सकते. यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि जो किसान हमे रोटियां खिलता है आज उसे पुलिस की लाठियां खानी पड़ रही है.

आख़िर किसान आत्महत्या (Farmer Suicides) क्यों कर रहे है?

देश मे आज भी पैदावार की कोई कमी नही है. अब सवाल आता है की हरित क्रांति ने देश को आत्मनिर्भर किया खाद्यान में. 1965 से लेकर आज तक 6 गुना पैदावार बढ़ी है हमारी. फिर समस्या कहा आई, पैदावार कोई समस्या नही है, सिंचाई कोई समस्या नही है, तो किसान आत्महत्या क्यों कर रहे है? इसके बहुत सारे कारण हो सकते है. अब किसी नेता से पूछो तो वो बेसिर-पैर के जवाब दे कर अपना दामन बचा लेते ….जैसे मध्य प्रदेश में कई नेता बार बार बकवास करते रहते है, कि किसान दारू पीते हैं साहब, किसान कर्ज़ा लेकर खा जाते है साहब…..
अरे भई सवाल यह है कि कर्ज़ा लिया क्यो?
पहला, इसका मुख्य कारण है हमारी कृषि नीति.
और दूसरा, स्वामीनाथन कमीशन कि सिफारिशों का आज तक लागू ना किया जाना.
क्या है कहता स्वामीनाथन कमीशन (Swaminathan Commission) ?

डाक्टर एम एस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) भारत के मशहूर कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक है. उनका कहना था…..किसी फसल के उत्पादन पर जितना खर्चा आ रहा है, सरकार उससे डेढ़ गुना ज़्यादा दिलाए. अतिरिक्त और बेकार ज़मीनो को बाँटा जाए. कृषि भूमि और जंगलों को गैर कृषि उपयोग के लिए कॉर्पोरेट सेक्टर को देने पर रोक लगे. आदिवासियों और चरवाहों को जंगलों में जाने की इजाज़त हो. साथ ही कॉमन रिसोर्स पर जाने की भी इजाज़त मिले.
नेशनल लैंड यूज़ एड्वाइज़री सर्विस का गठन किया जाए. ताकि लैंड यूज़ का फ़ैसला पर्यावरण-मौसम और मार्केटिंग को ध्यान मे रखकर हो. कृषिभूमि की बिक्री को रेग्युलेट करने के लिए नियम बनाए जाए. जिसमे विक्रेता और खरीदार को ध्यान में रखा जाए.
2014 लोक सभा चुनाव में भाजपा जब सत्ता में आने को आतुर थी, तब भाजपा ने देश के किसानो का वोट पाने के लिए स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू करने का वादा किया था. 2014 का वो वादा आज महज़ एक जुमला बन कर रह गया है.
कितना लाभकारी है न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) ?

हरित क्रांति (Green Revolution) से पहले हमारी सारी खेती टिकाऊ खेती थी. पहले खाद बाज़ार से नही ख़रीदनी पड़ती थी. बीज घर का डालते थे. या ऐसे कहें कि बाज़ार का कुछ भी नही खरीदना पड़ता था. लेकिन जब हमने हरित क्रांति की टेक्नोलॉजी को स्वीकारा….तो पता चला की यह टेक्नोलॉजी काम करती है नये बीज से, नये खाद से और सिंचाई की व्यवस्था से. अब ये तीनो चीज़े मुफ़्त में तो आती नही, इसके लिए बहुत खर्चा आता है. तो इसके लिए सरकार ने 1965 में बड़ी अच्छी नींव रखी, कि सरकार किसानो की मदद न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price MSP) के मध्यम से करेगी. यह व्यवस्था 1965 से 1985 तक अच्छी चली.
1985 के बाद एक नया दौर शुरू हुवा. उस नये दौर में नेताओ और अफसरों ने मिल कर एक वहम पाल लिया. वहम क्या था? कि बहुत अनाज है हमारे पास अब हमें ज़्यादा एम.एस.पी (MSP) देने की ज़रूरत नही. उसके असर से एम.एस.पी को हर साल कम करते चले गये. 1985 से लेकर 2018 तक…..आज हालात यह है कि हमारा एम.एस.पी लाभकारी नहीं है.
किसानो को कैसे ठगती आई है सरकार ?
जब किसानो को उनकी कुल लागत पर 50% अधिक मिलेगा तभी लाभकारी होगा. लेकिन लागत से कम पर एम.एस.पी घोषित कर के सरकार ने बहानेबाज़ी कर के 33 साल किसानो को ठगा. तो पहली लूट कहाँ हुई, किसान की सरकार के द्वारा….जिसने किसान का अनाज किसान का उत्पादन लागत से कम मूल्य पर खरीद कर किसान को ठगा. एक और बात….एम.एस.पी की पूरी प्रक्रिया सरकार तय करती है किसान नही करते हैं. उस एम.एस.पी को क़ानून न बना कर निजी व्यापारी पर लागू नही किया.
आज की स्थिति क्या है कि एम.एस.पी सिर्फ़ सरकारी खरीद के लिए है. और सरकारी खरीद कितनी है, वह कुल कृषि उत्पादन का मात्र 6% है. बाकी 94% बिचौलियों के लिए है. उन पर एम.एस.पी लागू नही है. और एम.एस.पी लागू नही तो क्या होगा, वो एम.एस.पी से कम पर खरीदते हैं.
देश की कृषि को कैसे बचाया जा सकता है ?

यहाँ पर दो बातें हैं पहली कि सरकार ने एम.एस.पी लागत से कम कर दिया और दूसरी एम.एस.पी का क़ानून न होने पर बिचौलियें एम.एस.पी से कम पर खरीदते हैं. ऐसे मे किसानो पर दोगुनी मार पड़ती है. मेरा सरकार से निवेदन है एम.एस.पी को क़ानून का दर्ज़ा दें. अगर किसान को बचना है, और इस देश की कृषि को बचाना है तो. पूरे देश में क़ानून है कि कोई भी दुकानदार एम.आर.पी (MRP) से ज़्यादा मूल्य पर समान नही बेच सकता अगर बेचेगा तो क्या होगा? तीन साल की जेल, एक लाख रुपये जुर्माना. और उसका ट्रेडिंग लाइसेँसे भी कैंसिल हो जाएगा.
मैं यह कहना चाहता हूँ कि एम.एस.पी को एम.आर.पी एक्ट के तहत क़ानून बनाइए एम.एस.पी को क़ानून बनाने से मंडियों में बिचौलिए एम.एस.पी (MSP) से कम पर खरीद नही सकेंगे. ऐसे में किसानो को अपनी फसल का उचित मूल्य मिल सकेगा.
अंत में कुछ पंक्तियों के साथ मैं अपनी बात ख़तम करना चाहता हूँ.
शासन केवल भाषण देते,
कोई पूछा हाल नहीं,
ग्राम देव की खाली थाली,
रोटी के संग डाल नहीं,
आँधी ओले अनावृष्टि तो,
कभी बाढ़ का पानी है,
सत्य कहूँ तो कृषक दुखी है,
जोखिम भारी किसानी है.
जय किसान ! जय किसान ! जय किसान !
-पुष्पेन्द्र वर्मा
पीएचडी, लखनऊ विश्वविद्यालय
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